Last modified on 26 मई 2014, at 09:19

योग साधना / पुष्पिता

प्यार की
पहली सिहरन में
मुँदी पलकों के भीतर
जगी आँखों ने जाना
देह-भीतर
देह का जादू।

खामोश शब्दों ने किलक कर
जन्म लिया
नवानुभूति से भरकर।

अनुभूति की उड़ान-सुख में
अनुभव किया
अपनी ही देह का अमृतस्राव
प्रिय अधर में।

चाँद निहारने वाली आँखों ने
जाना चाँद का सुख
जो साधना के योग से मिलता है
भोग की साधना से नहीं।

तुम्हारे स्पर्श ने
पिलाया है प्यार का अमृत
अपने स्पर्श में
भर लेना चाहती हूँ तुम्हारे अंतरंग का रोम-रोम।