अखबारों में, विज्ञापन में छायी है खुशियाली
वहाँ जहाँ अब भय से सबकी घिग्घी बंधी हुई है
कांधे पर कर्जे की भारी गठरी लदी हुई है
इस अकाल में भला दिखेगी कैसे तो हरियाली !
रामराज के पीछे-पीछे लगी हुई रंगदारी
बदहवास-सा देखा श्रम को शहरों और गाँवों में
धूप जेठ की, जूआ खेले बरगद की छाँवों में
उबा हुआ संसार जरा था, ज्यादा थे संसारी ।
विज्ञापन में जो गरीब तो मंत्राी और विधायक
सांसद-सेठ और भी नीेचे, श्रमिक धनिक हैं दिखते
लिखने वाले भाग्य प्रजा के कैसे-कैसे लिखते
रंगा हुआ है काले रंग में रंगमंच का नायक ।
धनकोषों में धन, कुबेर का, कोसों कोस जमा है
इधर सकीचन का अब तक भी खाली ही बटुआ है।