अभी-अभी
चम्बा के द्वारों पर
श्यामल 'सांझ' उतरी है
भीगे धुंधलके में
रंग महल के सिलवटों भरे माथे तले
लगा सिंह-मुख--
पेड़ के गोल ठूंठ-सा
मदन की मिट्टी में
अनुभव का बीज
युगों के जिस्म में
रक्त-बीज बना
गर्भ धारण किया है
धरती ने
हवा की हल्की
बहुत हल्की चाप के साथ
कोई अनाम महक
रंग-महल के निकट भटकती है
रक्त-बीजों की आभा
सिल्वटों भरे माथे पर दमकती है।