रघुनाथ काशिराज बलवंत सिंह के दरबारी कवि थे। महाराजा ने इनकी कविता से प्रसन्न होकर इन्हें चौरा गाँव भेंट दिया था। इनके चार ग्रंथ प्राप्त हैं- 'रसिक-मोहन, 'जगत-मोहन, काव्य-कलाधर तथा 'इश्क महोत्सव। 'जगत-मोहन में कृष्ण की दिचर्या का वर्ण है, 'काव्य-कलाधर में नायक-नायिका भेद तथा 'इश्क महोत्सव में खडी बोली की कविता है। 'रसिक-मोहन इनका श्रेष्ठ ग्रंथ है, जिसमें अलंकारों के लक्षण वर्णित हैं जो अत्यंत स्पष्ट हैं। कविता में लक्षणों की अपेक्षा कवित्व पक्ष अधिक सबल है। व्यंजना सहज, चुटीली और मार्मिक है।