धूल में गिरे को उठाने वाला हरकारा हूँ अप्रेषित लिफ़ाफ़ा जिसमें दुनिया के संदेश हैं, मन के कलरव में रतजगा जाने कब से खोज रहा हूँ पाने का पता ख़ुद ही लिखकर