वह कौन सी है छवि खोजता जिसे है रवि,
प्रतिदिन भेज दल अमित किरन का।
वह कौन-सा है गान जिससे लगाए कान
गिरि चुपचाप खड़े ज्ञान भूल तन का॥
कौन-सा सँदेशा पौन कहता प्रसून से है
खिल उठता है मुख जिससे सुमन का।
कौन-से रसिक को रिझाती है सुना के गान
कौन जानता है भेद कोयल के मन का॥