Last modified on 4 अक्टूबर 2015, at 06:59

राकेट उड़ा / जयप्रकाश भारती

राकेट उड़ा हवा में एक,
लाखों लोग रहे थे देख।

पहले खूब लगे चक्कर,
हुआ अचानक छू-मंतर।

जा पहुँचा चंदा के पास,
जहाँ न पानी, जहाँ न घास।

उलटे पाँव लौट आया,
साथ धूल-मिट्टी लाया!