बहनें
नहीं आईं
इस बार भी
आतीं भी
तो किस रास्ते
जबकि रास्ते भूल चुके थे मंज़िल
भाइयों की कलाइयाँ सूनी थीं
राखियाँ
राख में धँस गयी थीं
बहनें
राख
बन चुकी थीं...
(रचनाकाल: 2016)
बहनें
नहीं आईं
इस बार भी
आतीं भी
तो किस रास्ते
जबकि रास्ते भूल चुके थे मंज़िल
भाइयों की कलाइयाँ सूनी थीं
राखियाँ
राख में धँस गयी थीं
बहनें
राख
बन चुकी थीं...
(रचनाकाल: 2016)