शांति मार्च के बाद फिर शुरू हो गये दंगे
बस यही ख़बर है
मैं क्या कर सकता था
मै कर रहा हूँ
मैं क्या करूँगा
चुप रहूँगा
सुनता रहूँगा
देखता रहूँगा
चलता रहूँगा
लगातार कभी न समाप्त होनेवाली यात्रा में
बातचीत अपने आपसे
अपने अनाम-परनाम मुखौटों से
झरते हैं अमलतास के फूल
गरम हवा में कुम्हलाते
और मैं उन्हें चुनता हूँ धूल में
राख हो चुके
थोड़ी देर में चल पड़ेंगे साथ धूल की आँधी के
क्या मैं जो बुरा है उसे बुरा कहूँगा
क्या मैं लडूँगा
क्या मैं कुछ करूँगा
रोककर पूछूँगा लौटते हुए हत्यारे से
इस सबका क्या कोई मतलब है
क्या वो मनुष्य न था जो अब नहीं लौटेगा घर अपने तुम्हारी तरह
वह अध्यापक था
वह साइकिल पर निकला कामगार था
और यही सोचते कर लूँगा पार
भारी यातायात को
मैं क्या करूँगा
तूम पूछते हो
मैं पूछता हूँ आप से
खोजूँगा लापता नामों को
या बस लिख दूँगा वक्तव्य विरोध का
मृतकों की ओर से