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रात बीती / महेन्द्र भटनागर

याद रह-रह आ रही है,
रात बीती जा रही है !

ज़िन्दगी के आज इस सुनसान में
जागता हूँ मैं तुम्हारे ध्यान में

सृष्टि सारी सो गयी है,
भूमि लोरी गा रही है !

झूमते हैं चित्र नयनों में कई
गत तुम्हारी बात हर लगती नयी

आज तो गुज़रे दिनों की
बेरुख़ी भी भा रही है !

बह रहे हैं हम समय की धार में
प्राण ! रखना पर भरोसा प्यार में

कल खिलेगी उर-लता जो
किस क़दर मुरझा रही है !