Last modified on 29 दिसम्बर 2007, at 23:30

रात में गली / उंगारेत्ती

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: उंगारेत्ती  » संग्रह: मत्स्य-परी का गीत
»  रात में गली


चिमड़े काग़ज़ के टुकड़े जैसा

सूखा है

आज रात का चेहरा


बर्फ़ से कुन्द

यह ख़ानाबदोश बाँक

गुज़र जाने देती है हमें

किसी भटकते पत्ते की तरह


एक सरसराहट की तरह

इस्तेमाल करता है मुझे

अनन्त समय