Last modified on 24 मई 2009, at 16:22

राधिका / विष्णु विराट

जान कर उससे ठगी है राधिका।

श्याम की इतनी सगी है राधिका॥


आंख में अरुणाभ डोरे कह रहे हैं,

रतजगी या रतिजगी है राधिका॥


देह से यह प्राण तक है, रसोवैस:,

उस रसिक के रसपगी है राधिका॥


गौर-श्यामल द्वैत में अद्वैत लगती,

उस विरल रंग में रंगी है राधिका॥


बावरी-सी कुंज गलियों में भटकती,

नेह की क्या लौ लगी है राधिका॥


उमड़ता घनश्याम, उसके अंक सिमटी,

बीजुरी-सी जगमगी है राधिका॥