Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 16:49

रास / सत्यप्रकाश जोशी

म्हानैं कांन्हौ रमावै रास रे
घूघरा घूमर घुमावै, छम,
छम, बाजै रंगताळी रास रे।

चिमकै रस बिजळी ग्वाळण रै आंगणै,
इमरत बळै है चांदा-दीया रै चांनणै,

नौलख तारा जगावै रास रे
घूघरा घूमर घुमावै, छम,
छम, बाजै रंगताळी रास रे।

लचकै है मोरिया, मुळके रंग बादळी
आभौ झुकै है आज धरती री छांवळी,

लिछम्यां बधावै म्हारो रास रे
घूघरा घूमर घुमावै, छम,
छम, बाजै रंगताळी रास रे।

अलेखूं गोपियां, कांन्हूड़ौ एक रे,
एकलड़ो रूप जांणै होवै अनेक रे,

बिरज री कांमणियां गावै रास रे
घूघरा घूमर घुमावै, छम,
छम, बाजै रंगताळी रास रे।

म्हांनै कांन्हौ रमावै रास रे
घूघरा घूमर घुमावै, छम,
छम, बाजै रंगताळी रास रे।