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रिश्ता / सुनीता जैन

बहुत दिनों के बाद
घर के दरवाजे जा
अपने लेटर-बक्स को देखा

क्या आने को था
इस उतरे-उतरे मौसम में भी
कहीं किसी से
फूलों का रिश्ता?

क्या होने को था
ऐसा कुछ जिसकी
छोड़ चुका मन
वर्षों से प्रत्याशा?

लेटर-बक्स भले खाली था
पर कहना क्या तुमने
सच ही,
पत्र नहीं भेजा?