उन्हें मैं
बा-दिल-ए-नाख्वास्ता,
रुखसत,
करूँगी,
अब और क्या उन्हें,
दिल के सिवा,
तोहफा दूँगी?
मुझसे जज़्बात की ,
ईनान छूटी जाती है,
लो सैल-ए-अश्क की ,
सरहद भी टूटी जाती है ,
अगर रोने ही से धुल जाए हर
ग़म-ए-फुर्क़त,
तो बेतहाशा बढ़ा लूँ
अश्कों से क़ुर्बत,
थे बावफा,
तो यूँ
बेसाख्ता
निकल क्यों गए,
इल्ज़ाम-ए-बेवफाई
मुझपे
लगाकर क्यों गए?