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रेत (14) / अश्वनी शर्मा

रेत अलसाई-सी
यहीं पसरी रहती है
आंधियां ही आती हैं
और चली जाती है
जैसे आते-जाते हैं
सुख-दुख
आदमी के जीवन में
स्थितप्रज्ञ संन्यासी है रेत!