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रेत (18) / अश्वनी शर्मा

रेत के उड़ते रहे
यूं ही बगूले
जैसे
चिंगारी भभक
आकाश छू ले
शास्त्र कहता
शब्द ही आकाश होता
हम कहां कब
शब्द या आकाश भूले।