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रेल / श्रीप्रसाद

आँधी आए, तूफान चले
दोपहर तेज हो, साँझ ढले
हो रात खूब काली-काली
परयह कब है रुकने वाली

इसने केवल चलना जाना
लोगों को लेना, पहुँचाना
लो टिकट, बैठ जाओ झट से
बंबई घूम आओ चट से

आ गई रेल सीटी देती
डिब्बों में सबको भर लेती
स्टेशन पर चहलपहल आई
आ गई रेल, बैठो भाई

चल देगी तो रह जाओगे
फिर खड़े-खड़े पछताओगे
झंडी दिखती है हरी-हरी
चल पड़ी रेल लो भरी-भरी

सबको पहुँचाती जाएगी
कल इसी समय फिर आएगी।