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लन्दन डायरी-13 / नीलाभ

हमारा रिश्ता वह सड़क है

जिसका नक्शे में कोई निशान नहीं

हमारा प्यार वह मैदान है

जहाँ से कोई रास्ता नहीं फूटता

हमारे एहसास चुभते हैं हमें

कीलों की तरह

हम कौन हैं ? मशीनी इन्सान

या बीसवीं सदी के आख़िरी दशक के लोग ?