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लम्स तुम्हारा/ सजीव सारथी

उस एक लम्हें में,
जिसे मिलता है लम्स तुम्हारा,
दुनिया संवर जाती है
मेरे आस पास,
धूप छूकर गुजरती है किनारों से,
और जिस्म भर जाता है,
एक सुरीला उजास,
बादल सर पर छाँव बन कर आता है,
और नदी धो जाती है,
पैरों का गर्द सारा,
हवा उडा ले जाती है,
पैरहन और कर जाती है मुझे बेपर्दा,

खरे सोने सा, जैसा गया था रचा,
उस एक लम्हें में,
जिसे मिलता है लम्स तुम्हारा,
कितना कुछ बदल जाता है,
मेरे आस पास....