Last modified on 30 जून 2014, at 04:19

लहरें / प्रेमशंकर शुक्ल

लहरें मेरी आँखों का सूनापन
बहा ले जाती हैं
लहरों की हर लीला नई है
जैसे कि हमारी हर साँस
पहली है

मेरे बचपन का दोस्‍त सूरज
सुबह-सुबह मेरे हृदय का नीर पीता है
(अपने अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए)

झील पी गया हूँ
कई-कई बार
(इसीलिए शब्‍दों के होठ पर पानी की चमक है)

दोपहर मेरी दोस्‍त है
मेरे साथ वह झील में नहाती है

पानी की पीरा
शब्‍दों की चुप्‍पी में बलकती है
सफ़ाई झील की चिकित्‍सा है

परदेस में भटकती है प्‍यास
इधर से उधर
और घर में माँ के हाथ का
लोटे में रखा ठण्‍डा पानी
काँपता है !