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लाजवन्ती धारणाएँ / अश्वघोष

लाजवन्ती धारणाएँ
पढ़ रहीं
नंगी कथाएँ

नीतियाँ बेहाल हैं
आदर्श की धज्जी उड़ी है,
रीतियाँ होकर
अपाहिज
कोशिशों के घर पड़ी है,
पुस्तकों में
क़ैद हैं नैतिक कथाएँ

मूल्य सारे
टूटकर बिखरे पड़े हैं,
प्रचलन को
स्वार्थ,
अब ज़िद पर अड़े हैं,
तेज़ होती जा रहीं
पछुआ हवाएँ ।