Last modified on 16 जून 2012, at 13:11

लापता लोग / अरविन्द श्रीवास्तव

कसूर क्या था रात का
जिसे हाँका गया रोशनी से

मैंने हृदय की खिड़कियाँ खोल रखी थीं
कोई गुलाब फेंक कर चला गया था

अक़्सर नींद में वे
ठोकते हैं कील
दीवार पर
लापता हुए लोग
लंबे वक़्त तक मुश्किल पैदा करते हैं
फ़ोन की घंटी बजती है और वे चहक सामने आते हैं

जो रखते हैं अपना मोबाइल स्वीच-ऑफ़
उन्हें भी मैं इसी सूची में करता हूँ शामिल ।