हर आदमी की आँख में
लालटेन उठाकर झाँकता था
हर आँख में एक छोटा-सा गड्ढा था
जिसमें कीचड़ भरा थोड़ा-सा पानी था
और पानी में रोशनी नहीं थी
पूरी पृथ्वी पर लिए-लिए जलती लालटेन
घूमता रहा दौड़ता-भागता
मेरे पास कुछ नहीं था कभी भी
फ़कत एक जलती लालटेन के सिवाय
और इसी लालटेन की रोशनी
मैं हर आँख में ढूंढता था
यह लालटेन कब से मेरे साथ थी
या मैं इस लालटेन को कब मिला
लालटेन ने मुझे खोजा था
या लालटेन मेरे द्वारा खोज ली गई थी
यह उस क्षण तक मालूम नहीं था
जब मैं चारपाई पर अंतिम बार
आख़िरी साँसें ले रहा था
लालटेन चारपाई के पास पड़ी
थिर जल रही थी
दस-बीस लोग पास खड़े-बैठे थे
बिलखते जाते थे, पूछते आख़िरी इच्छा
मूर्च्छा में मैंने जाने क्या कहा
किसी जनम में मुझे याद आया
कि मेरी इच्छा और मूर्च्छा के बीच
लालटेन की पीली रोशनी झर रही थी!