Last modified on 24 नवम्बर 2009, at 17:27

लिखना चाहिये / लाल्टू

लिखना चाहिए
और नहीं फाड़ना चाहिए
जो लिखना चाहिए

लिखना चाहिए कि
सरकार की अस्थिरता के आपात दिनों में
एक शाम उसका चेहरा था
मेरी उँगलियों को छूता

कि दिनभर दौड़धूप टकेपैसे की मारकाट के बाद
वह मैं रेलवे प्लेटफार्म पर खड़े
देख रहे थे अस्त जाता सूरज

भीड़ सरकार की अस्थिरता से बेखबर यूँ
सूरज उन तमाम रंगों में रँगा
जो उसके साथ हमें भी शाम के धुँधलके में छिपाए

कि उसके जाने के बाद लगातार कई शाम
मेरी उँगलियाँ ढूँढती हैं
उसकी आँखें
सूरज हर शाम पूछता कुछ सवाल

लिखना चाहिए
और नहीं फाड़ना चाहिए
हमारे उसके रोशनी के क्षण
जब सूरज और अपने दरमियान
अँधेरे में बेचैन है मन।