बार-बार उसे ख़र्च किया।
फिर भी भण्डारा चलता रहा।
जारी रहा
अखण्ड व्रत की तरह।
न सूखने वाली
रोशनाई की तरह।
चमकता रहा।
रचनाकाल : मई, 2001
बार-बार उसे ख़र्च किया।
फिर भी भण्डारा चलता रहा।
जारी रहा
अखण्ड व्रत की तरह।
न सूखने वाली
रोशनाई की तरह।
चमकता रहा।
रचनाकाल : मई, 2001