Last modified on 21 अप्रैल 2014, at 08:39

लेखा / गुरप्रीत

मैंने सब का,
कुछ न कुछ देना है
देना यह मुझसे,
कैसे भी दिया नहीं जाएगा
मेरे आते जाते सांस,
घूमती धरती के साथ घूमते हैं,
चमकते सूरज के साथ चमकते हैं
मेरे पास, तुम्हारे पास भाषा है
मैं धन्यवाद कह कर मुक्त हो सकता हूँ
नदी, पहाड़, जंगल, मैदान, पंछियो के लिए
मैं कौन सा ढंग चुनूँ...