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लौटना / नंदकिशोर आचार्य


लौटना होता है
अन्ततः हर किसी को
खोल में अपने।

कितनी दुनिया सिमट आती है
खोल में इस बीच
और फेल जाता है
कितना सूनापन दुनिया में !

(1990)