मैं अकेला हो गया हूँ
आँधियों में उड़ रहे पत्ते सरीखा
लौट आ बचपन
उड़ाकर बादलों के साथ, मुझको
पर लगाए जो
क्षितिज के पार नीलम देश में थे
घर बनाए जो,
वे सभी अब तो धुआँ बन उड़ रहे हैं
देख लेते
भूल से भी आ किसी दिन...
नहीं रे,
तू लौट मत
तेरे पाँव कोमल हैं
इधर का रास्ता बेहद कण्टीला है
कि सपनों से भरी आँखें
न कुछ भी देख पाएँगी
यहाँ तू आ गया तो
लौटना सम्भव नहीं होगा कभी रे,
लौटती है बूँद रेगिस्तान से कब ?