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वक़्त के साथ कदम गर वो मिलाते रहते / नफ़ीस परवेज़

वक़्त के साथ कदम गर वह मिलाते रहते
राह के सारे मक़ामात सजाते रहते

हम तो तन्हा ही ज़माने के सितम सह जाते
साथ होने का वह अहसास दिलाते रहते

दिल उन्हीं का है तो दस्तक की ज़रूरत क्या है
रस्मे उल्फ़त जो निभानी है निभाते रहते

दौलत-ए-दिल की अमीरी के नशेमन में हम
आसमाँ ओढ़ते धरती को बिछाते रहते

कुछ दुआओं का दवाओं का असर हो जाता
लेने हालात वह बीमार का आते रहते

दर्द इतने हैं यहाँ कितने बयाँ करते हम
लिख के तहरीर कई बार मिटाते रहते

जिंदगी तुझसे उन्हें पा के जहाँ मिल जाता
बारहा हम तेरे कदमों में न आते रहते