Last modified on 8 सितम्बर 2011, at 17:37

वन वर्ल्ड/ सजीव सारथी

तोड़ दायरे तोड़ सब हदें,
आज न रहे कोई सरहदें,
दरमियाँ तेरे मेरे दिल के अब,
एक आसमाँ एक अपना रब,
एक रंग है जब लहू का तो,
रंग भेद ये जात पात क्यों,
एक से हैं सब आंसू और हँसी,
फर्क तुझमें और मुझमें कुछ नही,
सजदों में कहीं कोई सर झुके,
या दुआओं में हाथ हों उठे,
ओढ़ मजहबें क्यों फिरे बशर,
पाक दिल तेरा है खुदा का घर,
इन दीवारों को तोड़ दें चलो,
इन लकीरों को मोड़ दें चलो,
बांटना हो तो बाँट लें चलो,
एक दूजे के दर्दो-गम चलो..

एक दूजे के दर्दो-गम चलो....

भूख पेट की सब को नोचती,
जिस्म की तड़प भी है एक सी,
चाह भी वही, आह भी वही,
मंजिलें वही, राह भी वही,
लाख नामों में हम बंधे तो क्या,
लाख चेहरों में हम छुपें तो क्या,
गौर से अगर देखो तुम कभी,
फर्क तुझमें और मुझमें कुछ नही,
एक सी है हैं तन्हाईयाँ भी तो,
दोस्तों कभी तुम भी सोचो तो,
नफरतों में क्यों खोये जिंदगी,
फासलों में क्यों कम हो हर खुशी,
दूरियों को अब छोड़ दें चलो,
दुश्मनी से मुंह मोड़ लें चलो,
बांटना हो तो बाँट लें चलो,
एक दूजे के दर्दो-गम चलो...

एक दूजे के दर्दो-गम चलो....

  • स्वरबद्ध गीत- आवाज़ महोत्सव -०२, संगीत – ऋषि एस