Last modified on 15 मई 2015, at 09:22

वर्णमयी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

अहिंक स्वरसँ पिक सुकूजित वेणु-वीणा, रंजना
विगत-अंजन नयन- व्यंजनसँ रसक अभि-व्यंजना।।1।।
कुटिल अलकक बक्र रेखासँ टवर्गक कल्पना
कर - चरण - तल - पल्लव हिसँ चारु वर्ग स्पर्शना।।2।।
अन्तःस्थ - सुलिला विलय-रूप सरस्वती रस-वाहिनी
कवि - हृदय उष्मा सघन जय हंस शीर्ष-स्थायिनी।।3।।
अहिंक सस्मित दन्त्य कान्तिक विन्दु इन्दु-द्युति ललित
अहिंक कण्ठक छन्द ध्वनि संगीत स्वर लहरी कलित।।4।।
मंजु नूपुर-शिंजिते अनुनासिकक अनुरंजना
चरण - तलहिक ताल - व्याख्यामे मृदङ गक कल्पना।।5।।
मूर्धन्य ध्वनि हे! राग रस केर अधर मधुर निवासिनी
वर्णमयि! अपरूप रूपक कविक हृदय विलासिनी।।6।।