डोलै छै मऽन जैनाँ पीपर-पात डालै हो।
कुहुकी कोइलिया कहै छै वसंत ऐलै हो॥
निकली केॅ घरऽ से ऐलाँ दुआरी पेॅ।
देखलां वसंत छेलऽ झूमै अटारी पेॅ॥
फागुन के मस्ती मतैलऽ परान छेलै।
चेहरा पेॅ उगलऽ वसंती बिहान छेलै॥
उल्टी केॅ हेरलां तेॅ छप्पर उधियैलऽ हो।
कुहुकी कोइलिया कहै छै वसंत ऐलै हो॥
देखै छी आंख भर मौसम लहरैलऽ।
डार-डार, पात-पात फुनगी फुलैलऽ॥
कुंडल हजार-लाख गाछी के कानऽ में।
चमकै बगीचा जेनां दुल्हनियाँ गौना में॥
हमरऽ घऽर छिलको नै आँठियो तेॅ ऐलै हो।
कुहुकी कोइलिया कहै छै वसंत ऐलै हो॥
भरलऽ छै देखै छी धरती घऽर लाली।
चिकना खेसाड़ी-बूट मकय के बाली॥
पंछी के लोल भरै तितली अघाबै छै।
फगुआ के गीत गाबी कहर मचाबै छै॥
हम्में घोरी पानी परास-रंग बनैलाँ हो।
कुहुकी कोइलिया कहै छै वसंत ऐलै हो॥