अचानक खिड़की खुल जाएगी
और माँ पुकारेगी
अन्दर आने का वक़्त हो गया ।
दीवार फटेगी
मैं कीचड़ सने जूतों में
स्वर्ग-प्रवेश करूँगा
मैं मेज़ पर आऊँगा
और सवालों के ऊलजुलूल जवाब दूँगा ।
मैं ठीक-ठाक हूँ मुझे अकेला
छोड़ दो । सर हाथ पर धरे बैठा हूँ --
बैठा हूँ । मैं उन्हें कैसे बता सकता हूँ
उस लम्बे उलझे रास्ते के बारे में ?
यहाँ स्वर्ग में माँएँ
हरे स्कार्फ बुनती हैं
मक्खियाँ भिनभिनाती हैं
पिता ऊँघते हैं सिगड़ी के बगल में
छह दिनों की मेहनत के बाद ।
न, निश्चय ही मैं नहीं कह सकता उनसे
कि लोग एक
दूसरे का गला काटने पर उतारू हैं ।