मैं खिलता जाता हूँ प्रतिपल !
तरुवर की डालों पर कलियाँ,
नभ में झिलमिल तारावलियाँ,
धीरे-धीरे आ खिल जातीं लेकर जीवन की ज्योति नवल !
सूखी सरिता छल-छल जल भर,
बूँदें मरुथल टप-टप पाकर,
जब जीवन पा जाता कण-कण, मैं भी भर लेता उर में बल !
भर कर मीठा हास जगत में,
आया नव मधुमास जगत में,
मेरे स्वर भी बोल उठे, जब कूक उठी पेड़ों पर कोयल !
1946