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विदा / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

साँची मान सहेली परसों,
पीतम लैवे आवेगो री!
मात-पिता भाई-भौजाई, सबसों राख सनेह-सगाई,
दो दिन हिल-मिल काट यहाँ से-फिर को तोहि पठावेगी री!
अबको छेता नाहिं टरेगो, जानों पिय के संग परेगो,
हम सब को तेरे बिछुरन को दारुण शोक सतावेगी री!
च्लने की तैयारी करले, तोशा बाँध गैल को धरले,
हालाहाल बिदा लों पीहर वारे, रोवत संग चलेंगे सारे,
‘शंकर’ आगे-आगे तेरो-डोला मचकत जावेगी री!