तुम्हारे अवसान को
कुछ ही वक़्त बीता है
तुम जा बसे हो
उस नीले नभ के पार
इन्द्रधनुषी रंगो मे नहाकर
मुझे फिर से आकर्षित
करने को तैयार
उस रोज़ चौखट पर मेरा हाथ था
हर तरफ चूड़ियो के टूटने का शोर था
झुँझला उठती थी मैं जब तुम
बार-बार उन्हे खनकाया करते थे
आज उनके टूटने का बेहद ही शोक था
तालाब का पानी सुर्ख था न की
रक्तिम क्षितिज की परछाईं थी
माथे की लाली को धोने
विधवा वहाँ नहाई थी
समाज के ठेकेदारो का
बड़ा दबदबा है
सफ़ेद कफ़न मे मुझे लपेटा
कहा तू "विधवा" है
वो वैधव्य कहते है
मैं वियोग कहती हूँ
वियोग - अर्थात विशेष योग
मिलूँगी शीघ्र ही
उस रक्तिम क्षितिज के परे
मिलन को तत्पर
सतरंगी चूड़िया डाली है हाथो मे
पहन रही हूँ रोज़
तुम्हारे पसन्दीदा
महरूनी रंग के कपड़े
कही सजती है दुल्हन भी
श्वेत बे-रंग वस्त्रों मे