वापसी असंभव तो नहीं
मुश्किल ज़रूर है
तुम—
जो नर्म लोगों के गर्म कमरों की सुविधाओं में फंस रहे हो
नहीं जानते कि धीरे—धीरे एक दलदल में धंस रहे हो
जिसके नीचीक मृत्यु-क्षण तुम्हारे इंतज़ार में है.
उस मृत्यु-क्षण तक पहुँचने के बाद
तुम दलदली अँधेरे में
एक प्रेत-पुरुष की तरह मँडराओगे
और तब—
तुम कुमार विकल के नाम से नहीं जाने जाओगे
तुम्हारा नाम एक भद्दी गाली में बदल जाएगा
और तुम्हारे प्रियजन तुम्हें स्वीकार करने से इन्कार कर देंगे.
तुम्हारे वे नौजवान साथी
जिनसे तुम पानी की मशकें ले कर जल्दी लौट आने का
वादा करके आए थे
अपने होंठों में भद्दी गाली को बुदबुदाकर
उस रेगिस्तान को लौट जाएँगे
जहाँ तुम लोग
एक महापुल बना रहे थे.
पुल तो तुम्हारे बिना भी बन जाएगा
लेकिन तुम्हारे नाम से जुड़ी गाली को
कौन मिटा पाएगा.
समय है कि तुम
इन कमरों से बाहर आओ
और अपने नये ख़रीदे जूतों को
दलदल में छोड़कर
उस रेगिस्तान को लौट जाओ
जहाँ तुम्हारे साथी
पानी की मशकों के इंतज़ार में होंगे.