तेरी आँखों में पर्वत की झीलों का नि:सीम प्रसार मेरी आँखों बसा नगर की गली-गली का हाहाकार, तेरे उर में वन्य अनिल-सी स्नेह-अलस भोली बातें मेरे उर में जनाकीर्ण मग की सूनी-सूनी रातें! लाहौर, 19 सितम्बर, 1935