भील लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बयड़ी आडल ढुलकी वाजे हो।
बांगड़ भड़के झुणी वो।
तारो माटी रामस्यो आवे वो,
बांगड़ भड़के झुणी वो।
तारा माटी नो मांडवो वो, मांडवे नाचण आइ।
हामु हजार भर्या ने, हामु मांडवे आइ।
तारा माटी नो मांडवो वो, मांडवे नाचण आइ।
- बारात दुल्हन के यहाँ आती है तब मंडप में वर पक्ष की औरतं भी नाचती है।
वधू पक्ष की औरतें गालियाँ गाती हैं।
टेकरी की आड़ (पीछे) में ढोलक बज रही है तुम भड़कना मत। यह मंडप रामसिंह का है। तुम्हारे लाड़ले का है जो तुम मांडवे में नाचने को आ गईं? उत्तर में वर पक्ष की औरतें गीत में कहती हैं कि- हमने दहेज में लड़की के पिता को एक हजार रुपये दिये तब हम नाचने को आई हैं।