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ख़ुद को रचता गया / नारायण सुर्वे
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16:10, 9 दिसम्बर 2010
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आकाश
खी
की
मुद्रा पर अवलम्बित रहा नहीं मैं
किसी को भी सलाम करना कभी सम्भव नहीं हुआ, मुझे
अनिल जनविजय
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