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युग-नाद / हरिवंशराय बच्चन
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03:09, 13 दिसम्बर 2010
दानवी विनत, वनिष्ट परास्त-
दिग्दिगंत
दिग् दिगंत
से
ध्वनित प्रतिध्वनित होता है यह
परदेशी साशन डोला था-
:::
करो या मरो! मरो या करो।
:::
कुछ न गुज़रो, कुछ न गुज़रो।
Tusharmj
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