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ऐसा कैसे होता है/ प्रदीप मिश्र

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<poem>'''ऐसा कैसे होता है'''

हम भी बच्चे तुम भी बच्चे
क्या हममें तुममें भेद

भेद बहुत है हममें तुममें
सुन्दर कपड़े, अच्छा खाना
बढ़िया सा स्कूल
पढ़ लिखकर तुम आगे बढ़ते
हम रोजी-रोटी में गुल

क्योंकर ऐसा होता है
ऐसा कैसे होता है
मानव-मानव सभी एक हैं
सबमें एक सा प्राण
फिर क्यों तुम इतनी मस्ती में
हम हैं लस्त-पस्त निस्प्राण

बच्चों के इन प्रश्नों-प्रतिप्रश्नों में
रेंग रहें हैं सांप

सांपों के पीछे-पीछे
दौड़-भाग करते लोगों में
छंदों जैसा कुछ भी नहीं है
किसी पंक्ति में
किसी सिरे में
कोई ताल-मेल नहीं है

हम भी बच्चे तुम भी बच्चे
फिर भी भेद अनेक
समझ सको तो समझ के चलना
गड्ढों को तुम भरते चलना
मिट जाएगा भेद

हम भी बच्चे तुम भी बच्चे
क्या हममें तुममें भेद ।


</poem>
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