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इस जगह का पता / प्रदीप मिश्र

97 bytes added, 16:14, 13 दिसम्बर 2010
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=प्रदीप मिश्र|संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>'''इस जगह का पता'''  
यहाँ से
हर राह गुजरात की तरफ तरफ़ जा रही हैकभी यहीं से सारी राहें मेरठ गयीं गईं थीं
कभी अयोध्या
तो कभी अलीगढ़ और मुरादाबाद
यहाँ से
दिखाई देतीं हैं विशाल रथयात्राएंरथयात्राएँ
दिखाई देते हैं लोगों से खचाखच भरे मैदान
दिखाई देते हैं ज्वालामुखियों पर बसे नगर और महानगर
यहाँ से
सबकुछ दिखाई देता है साफ-साफ
नहीं दिखता है तो सिर्फ सिर्फ़ अपना घर
यहाँ पर एक कब्रगाह क़ब्रगाह हैजिसकी सारी कब्रें खुदी हुयी हुई हैं
और हड्डियों को हवा बिखेर रही है इधर-उधर
यहाँ पर देश के चुने हुए
बड़े-बड़े अखाड़े हैं
यहाँ पर राजा का दरबार है
जिसमें देश की किस्मत क़िस्मत का फैसला फ़ैसला होता हैपिछले फैसले फ़ैसले में गुजरात को मौत की सजा सज़ा सुनाई गयी गई थी
इसबार किसी प्रदेश की बारी है या मुकम्मल देश की
आंक आँक रहे हैं पत्रकार
सबको पता है इस जगह का पता
अब बस भी करो
हमें अपने घरों में चैन से रहने दो
टहलने दो चाँदनी रात में बैखौफ। बैखौफ़ ।
</poem>
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