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बुरे दिनों के कलैण्डरों में/ प्रदीप मिश्र
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|रचनाकार=प्रदीप मिश्र
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}}
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<poem>
'''बुरे दिनों के कलैण्डरों में
'''
जिस तरह से
नमक में होती है मिठास
भोजन में होती है भूख
नफरत
नफ़रत
में होता है प्यार
रेगिस्तान में होती हैं नदियाँ
अनिल जनविजय
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