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जो अन्धों की स्मृति में नहीं है / अजेय
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,
10:09, 24 दिसम्बर 2010
और हमारी नींद में शोर .....
ज़िन्दा हथेलियाँ होती थीं
ज़िन्दा ही त्वचाएं
<br />
फिर पता नहीं क्या हुआ था
अचानक हमने अपना वह स्पर्श खो दिया
क्या हुआ था ?
[[Media:[[''
== केलंग ,27.08.2010 ==
'']]]]
</poem>
अजेय
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