[[मकड़ी और मक्खी]]]{{KKGlobal}}<poem> (मकडी){{KKAnooditRachnakaarधागा बुना अंगना में मैंने|चित्र=जाल बुना कल रात मैंने |नाम=सुकुमार राय जाला झाड साफ़ किया है वास *|उपनाम=आओ ना मक्खी मेरे घर|जन्म=आराम मिलेगा बैठोगे जब |मृत्यु= फर्श बिछाया देखो एकदम खास *|जन्मस्थान= (मक्खी)|कृतियाँ=छोड़ छोड़ तू और मत कहना |विविध=बातों से तेरा मन गले ना काम तुम्हारा क्या है मैं सब जानूं* फंस गया गर जाल के अन्दर कभी सुना है वो लौटा फिर बाप रे ! वहाँ घुसने की बात ना मानूं * (मकड़ी)हवादार है जाल का झूला चारों ओर खिडकी है खुला नींद आये खूब आँखे हो जाए बंद *आओ ना यहाँ हाथ पाँव धोकर सो जाओ अपने पर मोड़कर भीं-भीं-भीं उड़ना हो जाए बंद * (मक्खी)ना चाहूँ मैं कोई झूला बातों में आकर गर स्वयं को भूला जानूं है प्राण का बड़ा ख़तरा *तेरे घर नींद गर आयी नींद से ना कोई जग पाए सर्वनाशा है वो नींद का कतरा * (मकड़ी)वृथा तू क्यों विचारे इतना इस कमरे में आकर देख ना खान-पान से भरा है ये घरबार *आ फ़टाफ़ट डाल ले मूंह में नाच-गाकर रह इस घर में चिंता छोड़ रह जाओ बादशाह की तरह * (मक्खी)लालच बुरी बला है जानूं लोभी नहीं हूँ ,पर तुझे मैं जानूं झूठा लालच मुझे मत दिखा रे *करें क्या वो खाना खाकर उस भोजन को दूर से नमस्कार मुझे यहाँ भोजन नही करना रे * (मकडी)तेरा ये सुन्दर काला बदन रूप तुम्हारा सुन्दर सघन सर पर मुकुट आश्चर्य से निहारे *नैनों में हजार माणिक जले इस इन्द्रधनुष पंख तले छे पाँव से आओ ना धीरे-धीरे * (मक्खी)मन मेरा नाचे स्फूर्ति से सोंचू जाऊं एक बार धीरे से गया-गया-गया मैं बाप रे!ये क्या पहेली *ओ भाई तुम मुझे माफ़ करना जाल बुना तुमने मुझे नहीं फसना फंस जाऊं गर काम नआये कोई सहेली * (उपसंहार)दुष्टों की बातें होती चाशनी में डुबोया आओ गर बातों में समझो जाल में फंसाया दशा तुम्हारा होगा ऐसा ही सुन लो *बातों में आकर ही लोग मर जाए मकड़जीवी धीरे से समाये |जीवनी=[[सुकुमार राय / परिचय]] दूर से करो प्रणाम और फिर हट लो * }}
कवि * [मकड़ी और मक्खी / सुकुमार राय द्वारा रचित काव्य का अनुवाद ]]<* [[ /poem>सुकुमार राय]]