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<poem>छोटा छोटा कद बच्चों का
बोझ मगर कितना बस्तों का

जैसी बातें करते हो तुम
मतलब क्या ऐसी बातों का

जो मंजिल तक पहुंचाते हैं
पता बताओ उन रास्तो का

सर पर चढ़ कर सूरज बोला
अब ढूँढो साया पेड़ों का

कैसे बिछड़ गया वो मुझसे
साथ हमारा था जन्मों का

बहुत खोखले निकले हैं वो
भरम बहुत था जिन रिश्तों का</poem>
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