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इतियास (1) / भंवर भादाणी
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06:51, 30 दिसम्बर 2010
कैरी मजाल क‘
धोखो केवै ...!
कदै ई थे
तोड़ण विश्वामितर रौ
बरत
धारये रूप
मेनका ।
म्हे माना
माननी पड़ै
थांरी -
अर
थांरे जिसां री
महिमा।
</Poem>
आशिष पुरोहित
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