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<poem>वो जो हमसे बिछड़ने लगे
दिल में काँटे से गाड़ने लगे

बेवफाओं से था सब गिला
तुम भला क्यों बिगड़ने लगे

अब कहाँ और तुमको रखें
याद के घर उजड़ने लगे

उनसे करके उम्मीदे वफ़ा
खुशबूओं को पकड़ने लगे

याद की आंधियां फिर उठीं
ज़ख्म फिर से उघड़ने लगे

फिर से पत्थर कोई मारिये
गम के घेरे सिकुड़ने लगे

चाँद उनको 'अनिल' क्या कहा
वो गगन पे ही चढ़ने लगे</poem>
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